सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत का अनमोल...
सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत का अनमोल...
सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत का अनमोल तोहफा है बादामी। ये एक ऐसी सुंदर जगह है, जिसका अनुभव लेने के बाद आपको ऐसा महसूस होगा कि, आप छठीं-सातवीं शताब्दी के जीवन का ही अनुभव ले रहे हैं। बादामी एक प्राचीन शहर है, जो उत्तर कर्नाटक के बागलकोट जिले के दक्षिण-पूर्व में 40 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। बादामी छठी-सातवीं शताब्दी में चालुक्य वंश की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध थी। कर्नाटकी घाटी में स्थित बलुआ चट्टानों से घिरा हुआ बादामी दक्षिण भारत के प्राचीन स्थानों में से है, जहाँ अधिक मात्रा में सुंदर गुफा मंदिरों का निर्माण हुआ। यहाँ पर चार गुफा मंदिर हैं, जिनमें से तीन हिंदू मंदिर हैं तथा एक जैन मंदिर है। इन मंदिरों को देखने के लिए और चालुक्य काल की वास्तुकला देखने के लिए बादामी की सैर अवश्य करें।
तो जानिए इन अविश्वसनीय गुफ़ा मंदिरों के बारे में, जो शिल्प की दृष्टि से भारत की सबसे शानदार हिंदू गुफाओं में से हैं।
पहला गुफा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में भगवान शिव के अर्धनारीश्वर और हरिहर अवतार की नक्काशियां की गई हैं। यहाँ पर 18 फुट ऊंची नटराज की मूर्ति है जिसकी 18 भुजाएं हैं, जो अनेक नृत्य मुद्राओं को दर्शाती है। इस गुफा में महिषासुरमर्दिनी की भी उत्तम नक्काशी की गई है। दूसरी गुफा की पूर्वी तथा पश्चिमी दीवारों पर भूवराह तथा त्रिविक्रम के बड़े चित्र लगे हुए हैं। गुफा की छत पर ब्रह्मा, विष्णु, शिव, के चित्रों से सुशोभित है। तीसरी गुफा में कई देवताओं के चित्र हैं तथा यहाँ ईसा पश्चात 578 शताब्दी के शिलालेख मिलते हैं। ये गुफा सबसे शानदार हैं। गुफा के बाहर एक बड़ा सा आंगन है। गुफा के प्रवेश पर द्वारपालक हैं। अंदर मुखमंडप है जबकि अन्दर स्तंभों से युक्त एक बड़ा हॉल है। इसके अंदर दीवारों पर विष्णु के विविध अवतार को चित्रंकित किया गया है। यहां पर शेषनाग की कुंडली पर विराजित विष्णु हैं। चौथी गुफा प्रमुख रूप से जैन मुनियों, महावीर और पार्श्वनाथ के चित्र हैं। एक कन्नड़ शिलालेख के अनुसार यह गुफा मंदिर 12 वीं शताब्दी का है। इन गुफाओं के ऊपर तोप भी स्थापित हैं लेकिन बाद में असुरक्षति पाए जाने पर गुफा के शिखर का मार्ग पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया।
बनशंकरी
बादामी में बनशंकरी देवी का प्राचीन मंदिर है। कहा जाता है कि, बादामी के पास स्थित इस बनशंकरी मंदिर का निर्माण 7 वीं शताब्दी में कल्याण के चालुक्यों ने किया था। बनशंकरी देवी की मूर्ति जो कि बहुत सुंदर है, वो काले पत्थर से बनाई गई है और सिंह पर बैठी है। मूर्ति के पैरों तले राक्षस दिखाया गया है। देवी के आठ हाथों में त्रिशूल, घंटा, कमलपत्र, डमरू, खडग – खेता और वेद दिखाए गए हैं। यह प्राचीन मंदिर वास्तुकला की द्रविड़ियन शैली को दर्शाता है। यह कर्नाटक के उन मंदिरों में शामिल है जहां हर रोज भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
अगर आप जनवरी और फरवरी के महीनों में इस मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं, तो यहां मेला देखने को मिलेगा। मंदिर में बनशंकरी रथयात्रा का आयोजन होता है। मंदिर के बाहर बने विशाल रथ पर माता की यात्रा निकाली जाती है। बनशंकरी देवी का मंदिर बादामी बस स्टैंड से पांच किलोमीटर की दूरी पर चोलाचीगुड गांव में स्थित है। बादामी रेलवे स्टेशन से दूरी 10 किलोमीटर होगी। बादामी से आपको आटो जैसे साधन यहां पहुंचने के लिए मिल जाएंगे।
विशाल सरोवर हरिदा तीर्थ
मंदिर के सामने विशाल सरोवर है। जिसे लोग हरिदा तीर्थ कहते हैं, हालांकि इसमें सालों भर पानी नहीं रहता। विशाल सरोवर चारों तरफ नारियल पेड़ के जंगलों से घिरा हुआ है।
बादामी के आसपास पर्यटन स्थल
गुफा मंदिरों के अलावा बदामी में उत्तरी पहाडी पर स्थित मालेगट्टी शिवालय सबसे अधिक प्रसिद्ध है। अन्य प्रसिद्ध मंदिर भूतनाथ मंदिर, मल्लिकार्जुन मंदिर और दत्तात्रय मंदिर हैं। बादामी में एक किला भी है जहाँ, साहसिक गतिविधियों को पसंद करने वाले पर्यटक यहाँ रॉक क्लायम्बिंग का आनंद उठा सकते हैं। यह किला मुख्य शहर से 2 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस किले तक केवल पैदल ही पहुंचा जा सकता है।
किले के तरफ जाने वाले उत्तरी पहाड़ी के रास्ते पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का छोटा सा संग्रहालय हैं। यहां आकर चालुक्य शासकों व इस स्थान के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। संग्रहालय से आगे बादामी किले के लिए रास्ता है। यहां से कठिन चट्टानों के बीच होते हुए 200 मीटर की कठिन चढ़ाई है। यहां से बादामी गुफाओं का और नगर का दूसरा नजारा दिखता है। दोनों पहाडियों के मध्य अगस्त्य कुंड है जिसके एक छोर पर भूतनाथ मंदिर है।
बादामी की सैर करने के लिए ऐसा कोई खास उचित समय नहीं हैं, क्योंकि आप किसी भी समय इस जगह की सैर कर सकते है, फिर भी यहाँ पर सैर करने का उत्तम समय सितंबर से फरवरी के बीच का हो सकता है। बदामी आने वाले 80 से 85 फीसदी सैलानी कर्नाटक के ही होते हैं, जबकि 8 से 10 फीसदी निकटवर्ती महाराष्ट्र व अन्य राज्यों व देशों से आते हैं। बदामी बीजापुर से 132 कि.मी. दक्षिण और धारवाड़ से 110 कि.मी. उत्तर-पश्चिम में स्थित है। हैदराबाद और हुबली तक घरेलू उड़ानें भी हैं जहां से बादामी 100 किमी दूर है। ये बदामी से निकटतम हवाई अड्डे है और धारवाड़, बेंगलुरू, हैदराबाद, शोलापुर, गाडगे, गुंटकल होसपेट, बीजापुर और बागलकोट से बादामी के लिए अनेक बसें चलती हैं। शोलापुर या गुंटकल ही निकटस्थ स्थान है जहां तक सीधी रेल सेवा है। आने-जाने के लिएं बस, टैक्सी व थ्री व्हीलर हैं जो बुकिंग व शेयर आधार पर चलते हैं। बागलकोट में रुकने पर आप कृष्णा नदी बने अलमाटी बांध व समीप में बने रॉक गार्डन का नजारा देख सकते हैं। बादामी में रुकने के लिए कर्नाटक पर्यटन विभाग के और दूसरे कई होटल व रिजॉर्ट हैं। स्थानीय भाषा कन्नड होने के बावजूद लोग हिंदी बोल व समझ लेते हैं।
तो जानिए इन अविश्वसनीय गुफ़ा मंदिरों के बारे में, जो शिल्प की दृष्टि से भारत की सबसे शानदार हिंदू गुफाओं में से हैं।
पहला गुफा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में भगवान शिव के अर्धनारीश्वर और हरिहर अवतार की नक्काशियां की गई हैं। यहाँ पर 18 फुट ऊंची नटराज की मूर्ति है जिसकी 18 भुजाएं हैं, जो अनेक नृत्य मुद्राओं को दर्शाती है। इस गुफा में महिषासुरमर्दिनी की भी उत्तम नक्काशी की गई है। दूसरी गुफा की पूर्वी तथा पश्चिमी दीवारों पर भूवराह तथा त्रिविक्रम के बड़े चित्र लगे हुए हैं। गुफा की छत पर ब्रह्मा, विष्णु, शिव, के चित्रों से सुशोभित है। तीसरी गुफा में कई देवताओं के चित्र हैं तथा यहाँ ईसा पश्चात 578 शताब्दी के शिलालेख मिलते हैं। ये गुफा सबसे शानदार हैं। गुफा के बाहर एक बड़ा सा आंगन है। गुफा के प्रवेश पर द्वारपालक हैं। अंदर मुखमंडप है जबकि अन्दर स्तंभों से युक्त एक बड़ा हॉल है। इसके अंदर दीवारों पर विष्णु के विविध अवतार को चित्रंकित किया गया है। यहां पर शेषनाग की कुंडली पर विराजित विष्णु हैं। चौथी गुफा प्रमुख रूप से जैन मुनियों, महावीर और पार्श्वनाथ के चित्र हैं। एक कन्नड़ शिलालेख के अनुसार यह गुफा मंदिर 12 वीं शताब्दी का है। इन गुफाओं के ऊपर तोप भी स्थापित हैं लेकिन बाद में असुरक्षति पाए जाने पर गुफा के शिखर का मार्ग पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया।
बनशंकरी
बादामी में बनशंकरी देवी का प्राचीन मंदिर है। कहा जाता है कि, बादामी के पास स्थित इस बनशंकरी मंदिर का निर्माण 7 वीं शताब्दी में कल्याण के चालुक्यों ने किया था। बनशंकरी देवी की मूर्ति जो कि बहुत सुंदर है, वो काले पत्थर से बनाई गई है और सिंह पर बैठी है। मूर्ति के पैरों तले राक्षस दिखाया गया है। देवी के आठ हाथों में त्रिशूल, घंटा, कमलपत्र, डमरू, खडग – खेता और वेद दिखाए गए हैं। यह प्राचीन मंदिर वास्तुकला की द्रविड़ियन शैली को दर्शाता है। यह कर्नाटक के उन मंदिरों में शामिल है जहां हर रोज भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
अगर आप जनवरी और फरवरी के महीनों में इस मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं, तो यहां मेला देखने को मिलेगा। मंदिर में बनशंकरी रथयात्रा का आयोजन होता है। मंदिर के बाहर बने विशाल रथ पर माता की यात्रा निकाली जाती है। बनशंकरी देवी का मंदिर बादामी बस स्टैंड से पांच किलोमीटर की दूरी पर चोलाचीगुड गांव में स्थित है। बादामी रेलवे स्टेशन से दूरी 10 किलोमीटर होगी। बादामी से आपको आटो जैसे साधन यहां पहुंचने के लिए मिल जाएंगे।
विशाल सरोवर हरिदा तीर्थ
मंदिर के सामने विशाल सरोवर है। जिसे लोग हरिदा तीर्थ कहते हैं, हालांकि इसमें सालों भर पानी नहीं रहता। विशाल सरोवर चारों तरफ नारियल पेड़ के जंगलों से घिरा हुआ है।
बादामी के आसपास पर्यटन स्थल
गुफा मंदिरों के अलावा बदामी में उत्तरी पहाडी पर स्थित मालेगट्टी शिवालय सबसे अधिक प्रसिद्ध है। अन्य प्रसिद्ध मंदिर भूतनाथ मंदिर, मल्लिकार्जुन मंदिर और दत्तात्रय मंदिर हैं। बादामी में एक किला भी है जहाँ, साहसिक गतिविधियों को पसंद करने वाले पर्यटक यहाँ रॉक क्लायम्बिंग का आनंद उठा सकते हैं। यह किला मुख्य शहर से 2 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस किले तक केवल पैदल ही पहुंचा जा सकता है।
किले के तरफ जाने वाले उत्तरी पहाड़ी के रास्ते पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का छोटा सा संग्रहालय हैं। यहां आकर चालुक्य शासकों व इस स्थान के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। संग्रहालय से आगे बादामी किले के लिए रास्ता है। यहां से कठिन चट्टानों के बीच होते हुए 200 मीटर की कठिन चढ़ाई है। यहां से बादामी गुफाओं का और नगर का दूसरा नजारा दिखता है। दोनों पहाडियों के मध्य अगस्त्य कुंड है जिसके एक छोर पर भूतनाथ मंदिर है।
बादामी की सैर करने के लिए ऐसा कोई खास उचित समय नहीं हैं, क्योंकि आप किसी भी समय इस जगह की सैर कर सकते है, फिर भी यहाँ पर सैर करने का उत्तम समय सितंबर से फरवरी के बीच का हो सकता है। बदामी आने वाले 80 से 85 फीसदी सैलानी कर्नाटक के ही होते हैं, जबकि 8 से 10 फीसदी निकटवर्ती महाराष्ट्र व अन्य राज्यों व देशों से आते हैं। बदामी बीजापुर से 132 कि.मी. दक्षिण और धारवाड़ से 110 कि.मी. उत्तर-पश्चिम में स्थित है। हैदराबाद और हुबली तक घरेलू उड़ानें भी हैं जहां से बादामी 100 किमी दूर है। ये बदामी से निकटतम हवाई अड्डे है और धारवाड़, बेंगलुरू, हैदराबाद, शोलापुर, गाडगे, गुंटकल होसपेट, बीजापुर और बागलकोट से बादामी के लिए अनेक बसें चलती हैं। शोलापुर या गुंटकल ही निकटस्थ स्थान है जहां तक सीधी रेल सेवा है। आने-जाने के लिएं बस, टैक्सी व थ्री व्हीलर हैं जो बुकिंग व शेयर आधार पर चलते हैं। बागलकोट में रुकने पर आप कृष्णा नदी बने अलमाटी बांध व समीप में बने रॉक गार्डन का नजारा देख सकते हैं। बादामी में रुकने के लिए कर्नाटक पर्यटन विभाग के और दूसरे कई होटल व रिजॉर्ट हैं। स्थानीय भाषा कन्नड होने के बावजूद लोग हिंदी बोल व समझ लेते हैं।
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